मनमोहक ऋतु: दा श्वे—प्रबल शीतलहर
नमस्ते दोस्तों! मैं यात्रा-प्रेमी Sisi हूँ। आज चीन के चौबीस सौर पर्वों में से "प्रबल शीतलहर" का दिन है। यह शीत ऋतु का तीसरा सौर पर्व है, जो मध्य सर्दियों के आधिकारिक आगमन और ठंड के बढ़ने का संकेत देता है। इस समय मैं “ग्वानदोंग की पहली पर्वत” कहलाने वाले चांगबाई पर्वत पर खड़ी हूँ। जहाँ तक नज़र जाती है, तिआनची झील की हिमाच्छादित छवि स्वच्छ और निर्मल दिखती है, और यहाँ का स्की रिसॉर्ट भी पूरी तरह खुल चुका है।
आइए, इन बर्फ से ढकी पर्वत-श्रृंखलाओं की तीखी किन्तु मनोहर सुंदरता के बीच, "प्रबल शीतलहर" की प्राकृतिक लय और जीवन-ज्ञान को साथ मिलकर महसूस करें!
क्या आप जानते हैं? "प्रबल शीतलहर" का मौसम पूर्वानुमान में बताई जाने वाली "भारी हिमपात" से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। यह मुख्यतः इस अवधि की जलवायु विशेषताओं को दर्शाता है।
"प्रबल शीतलहर" आते ही जिस समूह को सबसे ज़्यादा बर्फबारी का इंतज़ार रहता है, वह है किसान समुदाय क्योंकि प्राचीन काल से ही बर्फ को समृद्धि का प्रतीक माना गया है, इसीलिए कहा जाता है, "अच्छी बर्फ अच्छी फ़सल का संकेत।" जो की चीन के पूर्वजों द्वारा संचित कृषि अनुभव का सार है।
गहरी बर्फ मानो शीत-ऋतु की फ़सलों के लिए एक मुलायम "रज़ाई" हो, जो उन्हें कड़ाके की ठंड से बचाती है, और वसंत में पिघलकर भूमि को नमी और पोषण भी प्रदान करती है। आज भी कई खेतों में हिम-स्थिति सेंसर का उपयोग किया जाता है, ताकि बर्फ की मोटाई पर नज़र रखी जा सके और फ़सलों के बढ़ने के वातावरण को वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित किया जा सके। इस प्रकार परंपरागत कृषि ज्ञान और आधुनिक तकनीक का मेल करते हुए सर्दियों में भी फसल की समृद्धि की उम्मीद सुरक्षित रखी जाती है।
भोजन के लिए, "प्रबल शीतलहर" पर यह मान्यता है कि “प्रबल शीतलहर में सही खाद्य-संवर्धन कर लो, तो पूरे वर्ष ठंड नहीं सताएगी।" दक्षिण में लोग इस समय मांस का अचार बनाकर उसे संरक्षित करते हैं, जबकि उत्तर में ठंड से बचने के लिए माँस का सूप और शकरकंद की दलिया खाई जाती है—दोनों ही अपने-अपने प्रदेश की जलवायु के अनुकूल हैं।
"प्रबल शीतलहर" की ऋतु-प्रज्ञाऔर आनंद केवल चीन तक सीमित नहीं हैं! कई देशों में भी अपनी-अपनी विशिष्ट हिम-परंपराएँ और बर्फीले उत्सव हैं, जैसे फ़िनलैंड के रोवानेमी स्थित क्रिसमस विलेज की सांस्कृतिक गतिविधियाँ, या नॉर्वे के ओस्लो में होने वाला स्की फ़ेस्टिवल। भले ही विभिन्न देशों की परंपराएँ अलग हों, लेकिन ऋतु के साथ सामंजस्य बैठाकर सर्दियों का आनंद लेने की भावना एक-सी है, यही वह सांस्कृतिक अनुनाद है, जो सीमाओं के पार भी लोगों को जोड़ देता है।
इस क्षण मैं चांगबाई पर्वत की ढलान पर खड़ी हूँ, पैरों तले बर्फ की चरमराती आवाज़ सुनते हुए, हाथ में गर्मागर्म जिनसेंग चिकन-सूप थामे, आते-जाते यात्रियों को देखता हूँ, , तभी अनुभूति होती है उस पंक्ति का गूढ़ अर्थ—“दाशुए के बाद जब पहली धूप निकले, आधा आकाश सुनहरा आभा से भर उठे; ऐसी घड़ी में भला ऊँची इमारत पर बार-बार चढ़ने का आकर्षण कैसे न बने?
क्या आपके यहाँ बर्फ़ गिरी है? अपने गृहनगर की हिमपात की कहानी मेरे साथ अवश्य साझा करें!
