चीनी प्रतिनिधि ने यूएन महासचिव को पत्र भेजकर जापान के अनुचित कुतर्क का खंडन किया
संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि फ़ू थ्सोंग ने 1 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को एक और पत्र भेजकर संयुक्त राष्ट्र में जापान के स्थायी प्रतिनिधि काज़ुयुकी यामाज़ाकी द्वारा 24 नवंबर को भेजे गए पत्र में चीन के विरुद्ध की गई अनुचित और कुतर्कपूर्ण टिप्पणियों का कड़ा खंडन किया और चीनी सरकार का स्पष्ट रुख प्रस्तुत किया। यह पत्र संयुक्त राष्ट्र महासभा के आधिकारिक दस्तावेज़ के रूप में सभी सदस्य देशों में वितरित किया जाएगा।
फ़ू थ्सोंग ने पत्र में कहा कि हाल ही में उन्होंने महासचिव गुटेरेस को पत्र भेजा था जिसमें जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची की थाईवान के संबंध में भड़काऊ टिप्पणी पर चीनी सरकार की गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी। चीन ने गौर किया है कि जापानी स्थायी प्रतिनिधि ने 24 नवंबर को महासचिव गुटेरेस को पत्र लिखकर अनुचित बहाने बनाए, महत्वपूर्ण मुद्दों से बचते हुए, और चीन के विरुद्ध अनुचित और झूठे आरोप लगाए। चीन इसका कड़ा विरोध करता है।
पत्र में फ़ू थ्सोंग ने कहा कि वह चीनी सरकार के निर्देशानुसार चीन के रुख को स्पष्ट करते हैं। पहला, चीन और जापान के बीच वर्तमान गंभीर मतभेदों का सीधा कारण 7 नवंबर को संसदीय बहस के दौरान जापानी प्रधान मंत्री साने ताकाइची द्वारा की गई भड़काऊ टिप्पणी है, जिसमें उन्होंने झूठा दावा किया कि "थाईवान की स्थिति जापान के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर सकती है," जिसका अर्थ था कि जापान थाईवान मुद्दे में सैन्य हस्तक्षेप करेगा। यह गलत कथन द्वितीय विश्व युद्ध में विजय की उपलब्धियों और युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को खुले तौर पर चुनौती देता है, तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन करता है।
दूसरा, अपने प्रतिनिधि के एक पत्र सहित, जापान ने अपने "स्थिर रुख" पर कायम रहने का दावा किया है। चीन ने हाल ही में कई अवसरों पर जापान से पूछा है कि उसका तथाकथित "स्थिर रुख" वास्तव में क्या है। जापान ने लगातार टालमटोल भरे जवाब दिए हैं और अभी तक कोई सीधा जवाब नहीं दिया है। क्या जापान थाईवान मुद्दे पर अपने "स्थिर रुख" के बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पूरी और सटीक व्याख्या दे सकता है?
"काहिरा घोषणा-पत्र", "पॉट्सडैम घोषणा-पत्र" और "जापान के आत्मसमर्पण-पत्र" सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय कानूनी दस्तावेजों ने लंबे समय से थाईवान पर चीन की संप्रभुता, जापान द्वारा थाईवान और उसके द्वारा कब्जा किए गए अन्य चीनी क्षेत्रों को वापस करने के दायित्व, और जापान के साथ युद्धोत्तर व्यवहार को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों की पुष्टि की है। ये युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
वर्ष 1972 के "चीन-जापान संयुक्त वक्तव्य" में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "जापान सरकार चीन लोक गणराज्य की सरकार को चीन की एकमात्र वैध सरकार के रूप में मान्यता देती है," और "चीन लोक गणराज्य की सरकार दोहराती है कि थाईवान चीन लोक गणराज्य के क्षेत्र का एक अविभाज्य हिस्सा है। जापान सरकार चीनी सरकार के इस रुख को पूरी तरह समझती और उसका सम्मान करती है और ‘पॉट्सडैम घोषणा-पत्र’ के 8वें अनुच्छेद वाले रुख का पालन करती है।"
इसके बाद, जापान सरकार ने चीन और जापान के बीच कई संधियों और बयानों में इस रुख को बनाए रखने का स्पष्ट रूप से वचन दिया है। साने ताकाइची की गलत टिप्पणी जापानी सरकार की पिछली प्रतिबद्धताओं के विपरीत है, वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विश्वास कैसे हासिल कर सकती हैं?
तीसरा, अपने पत्र में जापानी प्रतिनिधि ने कहा कि जापान विशेष रूप से रक्षात्मक रक्षा की निष्क्रिय रक्षा रणनीति का पालन करता है और साने ताकाइची की टिप्पणी इसी स्थिति पर आधारित थी। थाईवान चीन की प्रादेशिक भूमि है, फिर भी साने ताकाइची ने जापान के "अस्तित्व के संकट" को "थाईवान में संकट" से जोड़ दिया है, जिसका अर्थ है चीन के विरुद्ध बल प्रयोग। यह स्पष्ट रूप से जापान के तथाकथित "पूर्णतः रक्षात्मक" और "निष्क्रिय रक्षा" दृष्टिकोण से परे है। जापान के बयान स्वयं-विरोधाभासी हैं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को धोखा दे रहे हैं।
"संयुक्त राष्ट्र चार्टर" में यह प्रावधान है कि सदस्य देश अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में धमकी या बल का प्रयोग नहीं करेंगे, न ही किसी सदस्य देश या राष्ट्र की प्रादेशिक अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेंगे। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को साने ताकाइची की गलत टिप्पणी से हुए गंभीर नुकसान को समझना चाहिए और युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को नष्ट करने की जापान की महत्वाकांक्षा के प्रति अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए।
चौथा, अपने पत्र में जापानी प्रतिनिधि ने अन्य देशों की रक्षा क्षमताओं पर भी कटाक्ष और आलोचना की। मैं महासचिव का ध्यान निम्नलिखित तथ्यों की ओर आकर्षित करना चाहूंगा:द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद से, जापान में दक्षिणपंथी ताकतों ने उसके आक्रामकता के इतिहास को फिर से लिखने के लिए दबाव बनाना कभी बंद नहीं किया है। पिछले कुछ वर्षों में, जापान ने अपनी सुरक्षा नीतियों को लगातार और महत्वपूर्ण रूप से समायोजित किया है, और इसके रक्षा बजट में लगातार तेरह वर्षों से वृद्धि हुई है। जापान ने "हथियार निर्यात पर तीन सिद्धांतों" को संशोधित किया है, जिसका वह युद्ध के बाद से लंबे समय से पालन कर रहा है और घातक हथियारों का निर्यात करना शुरू कर दिया है। जापान परमाणु हथियारों के प्रवेश का द्वार खोलने के लिए "तीन गैर-परमाणु सिद्धांतों" को संशोधित करने की भी योजना बना रहा है।
यह स्पष्ट है कि जापान बहुत पहले ही "पूर्णतः रक्षात्मक" दृष्टिकोण से आगे बढ़ चुका है और अब फिर से हथियार जुटा रहा है। तथाकथित "सैन्य शक्ति का विस्तार करना", "पड़ोसी देशों के विरोध के बावजूद एकतरफा यथास्थिति बदलना" और "दबावकारी कदम उठाना", यह वास्तव में जापानी पक्ष ही था जिसने ऐसे किए हैं।
इतिहास में, तथाकथित "अस्तित्व संकट" के बहाने सेना का विस्तार करना और युद्ध की तैयारी करना तथा तथाकथित "आत्मरक्षा" की आड़ में विदेशी आक्रमण शुरू करना जापानी सैन्यवाद की सामान्य चालें रही हैं। साने ताकाइची द्वारा की गई खतरनाक टिप्पणी के मद्देनजर, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को जापान की अपनी सेना का विस्तार करने और सैन्यवाद को पुनर्जीवित करने की महत्वाकांक्षाओं के प्रति अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए, तथा विश्व शांति की रक्षा के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
पांचवां, अपने पत्र में जापानी प्रतिनिधि ने कहा कि आपसी समझ और सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि साने ताकाइची के गलत शब्दों और कार्यों ने चीन और जापान के बीच आपसी विश्वास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है और चीन-जापान संबंधों की राजनीतिक नींव को नष्ट किया है।
अगर जापान सचमुच स्थिर चीन-जापान संबंध विकसित करना चाहता है, तो उसे एक-चीन सिद्धांत का स्पष्ट रूप से पालन करना चाहिए, चीन और जापान के बीच चार राजनीतिक दस्तावेजों की भावना और व्यक्त की गई राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का पालन करना चाहिए, अपनी गलत टिप्पणियों को तुरंत वापस लेना चाहिए, और चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को ठोस कार्यों में ईमानदारी से लागू करना चाहिए। अन्यथा, जापान को इसके सभी परिणाम भुगतने होंगे।