चीन की जापान को दो-टूक चेतावनी: 'सैनिकवाद की राह पर लौटने का अंजाम सिर्फ़ नाकामी होगा'
21 नवंबर को चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक नियमित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। इस दौरान एक पत्रकार ने जापान द्वारा हाल ही में अमेरिका को पैट्रियट एंटी-एयर मिसाइलों के पुन: निर्यात और हथियारों के निर्यात पर लगी रोक हटाने के बाद पहली बार घातक हथियारों के निर्यात पर सवाल उठाया।
साथ ही, यह भी पूछा गया कि रिपोर्ट्स के अनुसार, जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने तीन सुरक्षा संधि दस्तावेज़ों में बदलाव पर चर्चा शुरू कर दी है, जिसमें 'गैर-परमाणु के तीन सिद्धांतों' (परमाणु हथियार न बनाना, न रखना और न ही उनका इस्तेमाल करना) की समीक्षा भी शामिल है। इन मुद्दों पर चीन की प्रतिक्रिया पूछे जाने पर माओ निंग ने तीखी टिप्पणी की।
माओ निंग ने कड़े शब्दों में कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध में जीत के बाद, काहिरा घोषणा, पोट्सडैम घोषणा और जापान के आत्मसमर्पण जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनी दस्तावेज़ों में एक पराजित राष्ट्र के रूप में जापान की ज़िम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप से तय की गई थीं। इनमें हथियारों को पूरी तरह नष्ट करना और उन उद्योगों पर प्रतिबंध लगाना शामिल था, जो दोबारा शस्त्रीकरण का ज़रिया बन सकते हैं। प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि यदि जापान दोबारा सैनिकवाद के रास्ते पर लौटना चाहता है, तो अंततः उसे नाकामी ही हाथ लगेगी।
उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हाल के वर्षों में जापान ने लगातार अपने ऊपर लगी सैन्य पाबंदियों में ढील दी है और अपनी सैन्य क्षमताओं का विस्तार किया है। भले ही जापान यह दावा करता है कि वह परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया चाहता है, लेकिन दूसरी तरफ़ उसने 'परमाणु शेयरिंग' की चर्चाओं को हवा देकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं। ये कदम स्पष्ट करते हैं कि जापान अपनी रक्षात्मक नीति की सीमाओं को लांघ रहा है और अपने 'पुनःशस्त्रीकरण' की गति को तेज़ कर रहा है।
सम्मेलन में एक अन्य प्रश्न के दौरान जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची के उस बयान का ज़िक्र किया गया, जिसमें उन्होंने चीन के साथ रणनीतिक और आपसी लाभ वाले संबंध बनाए रखने की बात कही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए माओ निंग ने कहा कि थाईवान के मुद्दे पर जापानी प्रधानमंत्री की टिप्पणियों, जिनमें थाईवान जलडमरूमध्य में सैन्य हस्तक्षेप का संकेत दिया गया है, ने चीनी जनता के बीच गहरा आक्रोश पैदा किया है और चीन इसका कड़ा विरोध करता है।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यदि जापान वास्तव में चीन के साथ रणनीतिक और आपसी लाभ वाले संबंध विकसित करना चाहता है और नए युग के अनुरूप एक रचनात्मक और स्थिर रिश्ता बनाना चाहता है, तो उसे कथनी और करनी में समानता लानी होगी। जापान को चाहिए कि वह दोनों देशों के बीच तय चार राजनीतिक दस्तावेज़ों की भावना का सम्मान करे, अपनी गलत टिप्पणियों को तुरंत वापस ले और चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि ठोस कार्यों में तब्दील करके दिखाए।