जापान यूएन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के योग्य नहीं है: चीन

रिपोर्ट के अनुसार, 18 नवंबर को 80वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की बैठक में सुरक्षा परिषद में सुधार के मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान चीनी प्रतिनिधि ने अपने भाषण में स्पष्ट शब्दों में कहा कि जापान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने का अनुरोध करने के योग्य नहीं है।
इस बयान के अगले ही दिन, 19 नवंबर को पेइचिंग में आयोजित एक नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए इस आधिकारिक रुख़ की पुष्टि की और इसके पीछे के कारणों को विस्तार से रखा।
प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत, अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना सुरक्षा परिषद की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। इतिहास इस बात का गवाह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने आक्रामक युद्ध छेड़ा था, जिसके कारण एशिया और पूरी दुनिया के लोगों को भारी पीड़ा और विनाश का सामना करना पड़ा था।
चीन का मानना है कि आज भी जापान ने अपने युद्ध अपराधों पर पूरी तरह से और गंभीरता से आत्ममंथन नहीं किया है। इसके विपरीत, वहां कुछ लोग अभी भी द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास के बारे में ग़लत विचारों को बढ़ावा देते हैं, विवादास्पद यासुकुनी मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं, और आक्रामकता के इतिहास को विकृत करने, नकारने या उसका महिमामंडन करने का प्रयास करते हैं।
माओ निंग ने वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने हाल ही में थाईवान के मुद्दे पर स्पष्ट रूप से ग़लत टिप्पणियाँ की हैं। उन्होंने इसे चीन के आंतरिक मामलों में घोर हस्तक्षेप क़रार दिया और कहा कि जापान ने अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानदंडों को रौंदा है, साथ ही युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती दी है।
चीन का स्पष्ट मत है कि ऐसा देश अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में असमर्थ है, और इसलिए वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के कतई योग्य नहीं है।