बेनाम नायक
कौन कहता है कि मेरा कोई नाम नहीं ?
1931 में 18 सितंबर घटना की शुरूआत से
1945 में जापान के आत्मसमर्पण तक
3 करोड़ 50 लाख चीनी सैनिकों और नागरिकों ने बलिदान दिया
जिनमें अधिकांश लोगों ने
अपने नाम नहीं छोड़े
थाए-अड़जुआंग युद्ध में 30,000 सैनिकों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, परंतु उनमें से केवल 4,692 के नाम ही दर्ज हो पाए हैं। सौ रेजिमेंटों की लड़ाई पाँच महीने और चार दिन तक चली, जिसमें 17,000 से अधिक लोग शहीद हुए, किंतु शहीदों की दीवार पर केवल 4,860 से अधिक वीरों के नाम ही अंकित हुए हैं।
नदियां शोक में हैं, हरे पहाड़ गवाह हैं
कौन कहता है कि मेरा कोई नाम नहीं ?
धरती और नदी पहाड़ ही में मेरा नाम हैं
उनकी जवानी
मेरे देश की धरती और नदियाँ में समा चुकी हैं
आज
पहाड़ों और नदियाँ को स्मारक बनाएं
सूरज और चांद को शिलालेख बनाएं
सभी अनजान नायकों को श्रद्धांजलि