शीत्सांग के परिधान — हिमभूमि के संतानों की महान सुंदरता

शीत्सांग के परिधान — हिमभूमि के संतानों की महान सुंदरता

शीत्सांग के परिधानों का एक लंबा इतिहास है। समय के चलते, शीत्सांग के परिधान परंपरा के संरक्षण और विकास के बीच निरंतर परिवर्तित और विकसित होते गए, और आज वे धीरे-धीरे विविध प्रकार के नमूने अपने शानदार अंदाज दिखा रहे हैं।

शीत्सांग के परिधानों की मुख्य श्रेणियों में से एक ल्हासा परिधान की बुनियादी विशेषताएँ अत्यंत स्पष्ट हैं— चौड़ी कमर, लंबे बाजू, बड़ा कॉलर, दाहिनी ओर बंद होने वाली ओढ़नी, लंबी स्कर्ट, लंबे जूते, गूंथे हुए बाल तथा स्वर्ण-रजत-मणियों से बने चमकदार आभूषण। ये विशेषताएँ न केवल शीत्सांग के लोगों की सौंदर्य दृष्टि को दर्शाती हैं, बल्कि उनके जीवन-पर्यावरण और उत्पादन पद्धति की गहराईयों से भी जुड़ी हुई हैं। जून 2018 में, ल्हासा परिधान को शीत्सांग स्वायत्त क्षेत्र की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में सम्मिलित किया गया।

ल्हासा के उत्तर में स्थित श्वेत हिमखंड पारंपरिक हस्तशिल्प विद्यालय में, इस वर्ष 60 वर्षीय लोसांग मैलांग दो छात्रों को झुककर मार्गदर्शन दे रहे हैं। 1965 में छांगतु बासु काउंटी में जन्म लेने वाले लोसांग मैलांग ने 1983 में ल्हासा जाकर व्यवस्थित रूप से परिधान निर्माण कला सीखना शुरू किया। बीते दिनों को याद करते हुए उन्होने भावुकता के साथ कहा : “उस समय शीत्सांग के परिधान के नमूने एक समान थे, और रंग भी काफी साधारण।”

बाद में, उन्होंने ल्हासा के द्वेलोंग डेछिंग जिले के एक हस्तकला विद्यालय में शिक्षा कार्य शुरू किया। वे छात्रों को ल्हासा परिधान निर्माण की तकनीक सिखाने के साथ-साथ आंडो, खाम्बा जैसे क्षेत्रों से आए छात्रों से स्थानीय परिधान निर्माण की विशेषताएँ भी विनम्रता से सीखते रहे। इस विविध अनुभव ने उन्हें पूरे शीत्सांग की परिधान निर्माण तकनीक में निपुण बना दिया।  2019 में, लोसांग मैलांग को शीत्सांग स्वायत्त क्षेत्र की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत परियोजना के शीत्सांग परिधान (ल्हासा परिधान) की परंपरा पोशाक के प्रतिनिधि उत्तराधिकारी की उपाधि से सम्मानित किया गया। 2022 में, उन्हें ल्हासा नगर के प्रथम हस्तकला कला आचार्य का सम्मान प्रदान किया गया। उनकी शीत्सांग-चीनी द्विभाषी “राष्ट्रीय परिधान निर्माण” नामक पाठयपुस्तक प्रकाशित हुई, जो शीत्सांग के परिधान उद्योग में कार्यरत लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ्यपुस्तक बन गई है।

आज, लोसांग मैलांग द्वारा प्रशिक्षित सैकड़ों विद्यार्थी पठार भूमि के विभिन्न क्षेत्रों में गसांग फूलों की तरह खिल रहे हैं। उनके प्रोत्साहन से युवा डिजाइनर अमूर्त विरासत तकनीकों को आधुनिक सौंदर्य के साथ मिला रहे हैं। ल्हासा की सड़कों पर चलते आप दूर-दराज़ से आए पर्यटकों को भव्य शीत्सांग पोशाके पहने घूमते नजर आते देख सकते हैं, जो वहां के स्थानीय बुजुर्गों की पारंपरिक शीत्सांग पोशाकों के मिलन से बनी एक बेहद मनमोहक दृश्य दर्शाती है।