मनमोहक ऋतु·छुशू·गर्मी का अंत
नमस्ते दोस्तों! मैं हूँ आपकी यात्रा प्रेमी Sisi! क्या आपने महसूस किया है कि सुबह-शाम की हवा अब चिपचिपी नहीं रही, और धूप ने भी चुपके से अपनी तीख़ी चमक समेट ली है? जी हाँ, बिल्कुल सही — आज हम पहुँच गए हैं “छुशू” ऋतु में जो गर्मियों की विदाई का संकेत देती है। इस समय मैं शिनजियांग के कनास में हूँ, और आपको आमंत्रित करती हूँ , तो आइये मेरे साथ चले ,और गर्मी ऋतु के अंत के पल एवं शरद ऋतु की शुरूआत के मिलन की इस शांत सुंदर घड़ी को महसूस करें।
चीनी में“छुशू”के छु का अर्थ है “अंत”, इसलिए छुशू का तात्पर्य है कि गर्मी धीरे-धीरे कम होने लगती है और समस्त जीव-जगत संयमित हो जाते हैं। परंपरा के हिसाब से छुशू के तीन लक्षण” होते हैं:पहला लक्षण, बाज पक्षी शिकार करने लगते हैं ताकि सर्दी मौसम के लिए भोजन जुटा सकें ; दूसरा लक्षण, हवा-पानी शीतल और शांत होने लगती है, धीरे-धीरे गर्मी उदास और शांत हो जाती हैं, और खेतों में धान की फसल भी पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है;तीसरा लक्षण , अनाज की फसल पकने और कटने लगती है। हर ऋतु-चक्र में मौसम के सबसे सूक्ष्म परिवर्तन के संजोए होने के संकेत मिलते है और यह चीनी संस्कृति में मनुष्य और प्रकृति के सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व का एक जीवंत मिसाल है।
शिनजियांग के कनास झील दर्शनीय क्षेत्र में चाँदी-सी चमकती तनें व टहनियां और रंग बिरंगी चमकदार पत्तियों से घिरा सफेद भूर्ज वन धूप छांव रोशनी की सुन्दरता से भर उठता है। हवा के हल्के झोंके से उनके नन्हें-नन्हे पत्ते सरसराने लगते हैं, मानो शरद ऋतु धीमे स्वर में कानों में कुछ फुसफुसा रही हो। कनास की नदी-घाटी में, परत-दर-परत फैले देवदारों के वन मीनारों की तरह ऊँचे खड़े हैं। उनकी सुईनुमा पत्तियों की बारीक धारें आसमान से झरती रोशनी को टुकड़ों में बाँट देती हैं, जो बिखरकर अनगिनत उछलते सुनहरे कणों-सी प्रतीत होती है। इस समय खरबूजे की फसल पककर तोड़ने योग्य होती है — उसका पतला छिलका, रस भरी मिठास, हमें धूप की महकती गूँज से मदहोश कर देती है। देखते-देखते चरागाह पर हल्का-हल्का सुनहरा रंग चढ़ आता है, मन-मौजी गाय-भेड़ें घूमती घूमती बाड़ों में लौट आती हैं। थुवा जाति परिवारों के रसोई घरो से निकलती हल्की-हल्की लहराती धुएं ऊपर उठती हैं, और दूध की चाय व घी की ख़ुशबू हवा में धीरे-धीरे सुनहरी महफिल में घुलमिल जाती है।
जापान में शरद ऋतु में प्रवेश से लेकर छुशू तक के पूरे दौर में पत्रों या शुभकामना कार्डों के माध्यम से अपने परिजनों व मित्रों को अभिवादन भेजते हैं, और इस तरह एक-दूसरे को स्वास्थ्य और मौसम बदलने पर ध्यान रखने की याद दिलाते हैं। कनास की लकड़ी की झोपड़ियों से लेकर क्योटो की ग्रीष्मकालीन शुभकामना भेजने की परंपरा “छुशू”, हमें याद दिलाती है कि ऋतुओं का परिवर्तन सदैव सीमाओं से परे मानवता की साझा भाषा रहती है।
“शीतल हवा ग्रीष्म ऋतु ले जाती है , पूरी दुनिया नयी शरद ऋतु का आगमन करती है।” छुशू एक ऐसा सफ़र है, जो तपते ग्रीष्म से लेकर भरपूर शरद तक ले जाता है। कनास में यह यात्रा विस्तृत, शांत और अत्यंत काव्यात्मक है। क्या आपके यहाँ भी शरद की आहट सुनाई दे रही है? तो आइए, अपनी छुशू की मधुर स्मृतियाँ हमारे साथ साझा करने न भूलें!