तथाकथित "सैन फ्रांसिस्को शांति संधि" अवैध और अमान्य है- चीनी विदेश मंत्रालय
हाल ही में, थाईवान क्षेत्र के विदेश मामले विभाग के प्रमुख ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, "सैन फ्रांसिस्को शांति संधि" ने "काहिरा घोषणा-पत्र" और "पॉट्सडैम उद्घोषणा" जैसे राजनीतिक बयानों की जगह ले ली। इस "शांति संधि" ने थाईवान को चीन लोक गणराज्य को नहीं सौंपा, और चीन लोक गणराज्य ने कभी भी थाईवान पर शासन नहीं किया।
संबंधित कथन का खंडन करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने 18 अगस्त को पेइचिंग में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस तरह की भ्रांतियां सही और गलत के बीच भ्रम पैदा करती हैं और लोगों को भ्रमित करती हैं, जिससे एक बार फिर थाईवानी अधिकारी लाई छिंग-ते की स्पष्ट "थाईवान स्वतंत्रता" अलगाववादी प्रकृति उजागर होती है।
माओ निंग ने कहा कि थाईवान का चीन में वापस आना द्वितीय विश्व युद्ध की विजय और युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। "काहिरा घोषणा-पत्र", "पॉट्सडैम उद्घोषणा" और "जापानी आत्मसमर्पण के अनुच्छेदों" सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून पर बाध्यकारी कई दस्तावेज़ थाईवान पर चीन की संप्रभुता की पुष्टि करते हैं। ऐतिहासिक और कानूनी तथ्य यह है कि थाईवान चीन का है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
प्रवक्ता ने कहा कि तथाकथित "सैन फ्रांसिस्को शांति संधि" द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका द्वारा कुछ देशों को इकट्ठा करके चीन लोक गणराज्य और सोवियत संघ को छोड़कर जापान के साथ एकतरफा तौर पर शांति स्थापना के लिए जारी की गई थी, जो एक अवैध और अमान्य दस्तावेज है।
माओ निंग ने बल देते हुए कहा कि लाई छिंग-ते ने अपना राष्ट्रीय रुख पूरी तरह से खो दिया है, चीनी जनता के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध की जीत को नजरअंदाज कर दिया है, और द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास को जानबूझकर विकृत कर दिया है, जो कि घृणित है।