छिंगहाए-शीत्सांग पठार जन समूह के "पूर्वज" की खोज में सफलता
चित्र शिंगहवा एजेंसी से है
चीनी विज्ञान अकादमी के प्राचीन कशेरुकी प्राणी और मानवविज्ञान संस्थान तथा युन्नान प्रांत के पुरातत्व अनुसंधान संस्थान सहित कई वैज्ञानिक संस्थाओं के विशेषज्ञों ने 9 वर्षों की कठोर मेहनत की खोज के बाद जीनोम का सफलतापूर्वक अनुक्रमण कर युन्नान क्षेत्र के 17 स्थलों से 127 प्राचीन मानव जीनोम ढूंढ निकाले हैं , जो लगभग 7100 वर्ष पुराने हैं। गौरतलब है कि इसने तिब्बत-चीन पठार के लोगों के "पूर्वजों" से जुड़ी पहेली को सुलझाया है और पहली बार दक्षिण एशियाई भाषा-समूहों की आनुवंशिक उत्पत्ति का खुलासा करने में सफलता हासिल की है।
युन्नान के शिंगयी पुरातत्व स्थल पर नई खोज
छिंगहाए-शीत्सांग पठार जन समूह की आनुवंशिक संरचना हमेशा से एक अनसुलझी पहेली रही है।
युन्नान प्रांत के युशी शहर के थुंगहाई काउंटी में स्थित शिंगयी पुरातत्व स्थल से लगभग 7100 वर्ष पुराने एकल मानव अवशेष की खोज हुई है। इस खोज ने तिब्बत-चीन पठार की आनुवंशिक संरचना से जुड़े रहस्य को सुलझाने की आशा जगाई है। इस एकल मानव अवशेष के जीनोम में गहराई से विभाजित व बिल्कुल अज्ञात एक एशियाई आनुवंशिक तत्व पाया गया है। आगे के विश्लेषण ने भी यह स्पष्ट कर दिखाया है कि यह आनुवंशिक तत्व न केवल प्राचीन छिंगहाए-शीत्सांग पठार के जन समूह में पाया जाता है, बल्कि आधुनिक शीत्सांग जनसंख्या के जीनोम में भी इसकी उपस्थिति के लक्ष्ण पाए जाते है। इससे यह सिद्ध होता है कि “एशियाई मूल के शिंगयी पूर्वजों” का प्रतिनिधित्व करने वाला यह प्राचीन मानव समुदाय छिंगहाए-शीत्सांग पठार के लोगों के पूर्वजों में से एक रहा है।
दक्षिण एशियाई भाषा परिवार की जातीय उत्पत्ति
दक्षिण एशियाई भाषा जातीय समूह में मुख्य रूप से वा जाति, पुलांग जाति तथा वियतनाम, कंबोडिया और लाओस जैसे देशों की कुछ जनजातियाँ शामिल हैं।
इस नवीनतम अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पहली बार जीनोम डेटा के माध्यम से यह पता लगाया है कि लगभग वर्ष 1400 से 5500 वर्ष पूर्व युन्नान के मध्य क्षेत्र के जन समुदाय एक अनोखा और अभी तक अज्ञात पूर्वी एशियाई पूर्वज का जीन लिए पीढ़ियों से जी रहे हैं । उन्होंने इस समूह को “युन्नान मध्य पूर्वज जन समूह” का नाम दिया है और पाया है कि इस जन समूह का आज के दक्षिण एशियाई भाषा परिवार जन समूह के साथ घनिष्ठ संबंध है। “यह इस बात का संकेत है कि युन्नान प्रांत दक्षिण एशियाई भाषा परिवार के प्रारंभिक मुख्य क्षेत्रों में से एक होने की संभावना रखता है,” चीनी विज्ञान अकादमी के प्राचीन कशेरुक प्राणी व मानवविज्ञान संस्थान के एक शोध निबंध लेखक डॉक्टरेट वांग थ्येनयी ने कहा।
इस खोज ने दक्षिण एशियाई भाषा जातीय समूह उत्पति से जुड़ी परिकल्पनाओं व मान्यताओं को नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। इन तथ्यों ने युन्नान के मध्य क्षेत्र को इस वैज्ञानिक मंच के केंद्र में ला खड़ा कर दिया है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यही क्षेत्र एक महत्वपूर्ण प्रारंभिक बिंदु रहा होगा और विद्वानों को यह पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करेगा कि दक्षिण एशियाई भाषा से जुड़ा यह जन समुदाय आखिर कैसे अस्तित्व में आया और किस प्रकार आगे की ओर फैलता गया।
कांस्य युग का “जनजातीय का महाकुंभ”
इस अध्ययन से पता चलता है कि कांस्य युग से ही युन्नान प्रांत “जनजातीय महाकुंभ” का रूपधारण कर चुका था, जिस से विभिन्न मूल के समुदायों का मेल और मिश्रण हुआ। युन्नान के पश्चिमी क्षेत्र की जनसंख्या में मुख्य रूप से पूर्वी एशिया के उत्तरी पूर्वजों का आनुवंशिक कारक दिखाई देता है, जिनका पीली नदी क्षेत्र के कृषि समुदायों की आनुवंशिक से संबंध रखता है, जबकि मध्य क्षेत्र में तो युन्नान मध्य इलाके के पूर्वज जन समुदाय का राज था, वे दरअसल दक्षिण एशियाई भाषा परिवार से जुड़ी जातियों के प्रमुख पूर्वज माने जाते हैं।
इसके साथ ही, शोधकर्ताओं ने शिंगयी पुरातत्व स्थल से प्राप्त प्राचीन मानव अवशेषों पर समस्थानिक अनुसंधान कर उनके जीवन शैली में आए परिवर्तनों की झलक देखी। लगभग 7000 वर्ष पूर्व, ये लोग मुख्य रूप से शिकार और वनस्पतियों पर निर्भर थे। लगभग 4900 वर्ष पहले, उन्होंने खेती की शुरूआत को अंजाम दिया , और लगभग 3800 वर्ष पूर्व तक वे मुख्य रूप से कृषि पर आधारित जीवन जीते रहे । "दिलचस्प बात यह है कि हालांकि खाने-पीने का तरीका बदल गया , लेकिन 5500 से 3300 वर्ष पहले तक जनसंख्या में उल्लेखनीय स्थिरता बनी रही। इसका मतलब यह है कि खेती तकनीक की माहिरता बाहर से आए भारी प्रवासी समुदाय के ज़रिए नहीं मिली थी, बल्कि स्थानीय लोगों ने स्वयं ही इसे अपनाया और सीखा था," शोधकर्ताओं ने कहा।