“शीत्सांग स्रोत”का हकदार शाननान में संस्कृति का संगम  खोज

प्राचीन शाननान फिलहाल संस्कृति संचार की अद्भुत कहानी को निरंतर लिखते हुए आगे बढ़ रहा है। शाननान, जो उच्च स्तर के खुलेपन से पूरी तरह प्रेरित होकर देश विदेश की आम जनता के बीच संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की मनोरम कहानियाँ लिख रहा है।

संग्रहालय में छुपा है "ऊंचे पठार की रेशम मार्ग" का रहस्य

प्राचीन और गहरी एतिहासिक विरासत ने शाननान को 1995 में शीत्सांग का पहला संग्रहालय स्थापित करने का हकदार बनाया ।

श्रामति ज़ोर्मा ने पत्रकार को बताया कि बहुत से सांस्कृतिक आदान-प्रदान और उसके मेल मिलन की कहानियाँ संग्रहालय में प्रदर्शित हरेक वस्तुओं में छिपी हुई हैं। जोर्मा के पावों के निशान प्रदर्शनी के कोने कोने पर हैं ,तभी तो वह संग्रहालय में सुसज्जित सभी वस्तुओं से इतनी वाकिफ है:"देखिए इन बौद्ध मूर्तियों के चेहरों की झलक , उनके सिर की पगड़ी व लटकते आभूषण और उनकी वेश-भूषा , उनपर आपको दक्षिण एशियाई शैलियों की गहरी छांव नजर आएगी। ये कुछ थांगका चित्र हैं, जिनमें अभी भी नेपाली संस्कृति की परछाई देखने को मिलती है। यह वेद पत्तियाँ संस्कृत लिपि में लिखी गई हैं, और ये पत्तियाँ बेडोरो नामक पेड़ की हैं, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंध और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों में पायी जाती है।"

"शीत्सांग संस्कृति का निर्माण एक समावेशी प्रक्रिया है, जिसमें मध्य चीन और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों की संस्कृतियों का गहरा प्रभाव है, और तभी से धीरे-धीरे आज अपनी अनूठी शैली विकसित हुई है," "यह संवाद का मिलन ही नहीं एक दूसरे के बीच मेल जोल भी है।" श्रीमति जोर्मा ने जोर देते हुए कहा।

रोजमर्रा जीवन के हर पहलुओं में समा गयी हैं संस्कृति की निशानियां

शाननान की हर जगह में विभिन्न जातियों के मेल-जोल और सांस्कृतिक समन्वय के चिह्न हैं।

जब स्थानीय सज्जन छिरेन के घर अतिथि बनकर बैठते हैं, तो मकान के मालिक एक लकड़ी का कटोरा निकालते हैं और गर्मागर्म मक्खन वाली चाय डाल कर आपका स्वागत करते हैं — यह शीत्सांग लोगों की मेहमाननवाज़ी परंपरा मानी जाती है।

शीत्सांग के अनेक क्षेत्रों में लकड़ी के कटोरे बनाए जाते हैं, जिन में शाननान के च्याछा काउंटी में अखरोट की लकड़ी से बने कटोरे सबसे प्रसिद्ध हैं। छिरेन बताते हैं कि अक्सर लोग नेपाली हस्त-शिल्प वाले लकड़ी कटोरे खरीदना पसंद करते हैं। शीत्सांग में साक्षात्कार के दौरान, पत्रकार ने देखा कि शाननान से लेकर लिनझी और फिर अली क्षेत्र तक, लगभग हर "नेपाली खासियत" वाली दुकान में विभिन्न आकारों और प्रकारों से बनी लकड़ी के कटोरों की एक पूरी दीवार सजी धजी दिखाई देती है।

“शीत्सांग समुद्र से कोसों दूर है और न ही यहाँ रत्न पाए जाते हैं, इस पर भी वे हमारे आभूषणों की सजावट में बराबर मिलते हैं, इस से साबित होता है कि इतिहास में शीत्सांग समुद्री तटीय क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संपर्क बरकरार रखे हुए है,”श्रीमति ज़ोर्मा ने हमें बताया ।

"चासीदेले" से लेकर "नमस्ते" तक — संपर्क और संचार का विस्तारण

"चाशीदेले, आप क्या खरीदना चाहते हैं ?""नमस्ते, मैं आपके बिछौन देखना चाहता हूँ।"

बातचीत का यह परिदृश्य पिछले साल दिसंबर में यालोंग सामग्री आदान-प्रदान मेले का एक नजारा था। शाननान के नागरिक नेपाली व्यापारी के ठेले के सामने सामान चुन रहे थे, आमतौर पर वे एक-दूसरे की भाषा में अभिवादन करना पसंद करते हैं।

"चाशीदेले" का अर्थ है "शुभ-शुभ मंगलमय", जो जहां तहां शीत्सांग में सुने जाने वाला अभिवादन है।“नमस्ते”दक्षिण एशियाई क्षेत्र में प्रचलित अभिवादन है। लंबे समय तक आदान-प्रदान के दौरान ये दोनों शब्द सीमा क्षेत्रीय लोगों के बीच आम संवाद भाषा बन गए हैं।

सिर्फ आस-पास के क्षेत्रों के साथ व्यापार और आर्थिक संपर्क ही नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि “शीत्सांग स्रोत ”माने जाने वाला शाननान आज विश्व भर के शीत्सांग संस्कृति प्रेमियों को आकर्षित कर रहा है, खासकर हर साल गर्मियों में होने वाले यालों सांस्कृतिक और पर्यटन उत्सव के दौरान।

शाननान के चानांग काउंटी के मिन्ज़ुलिन मठ में, संवाददाता की मुलाकात ऑस्ट्रेलिया से आए एक दंपती से हुई। मैन्निंग एक चित्रकार हैं, अपनी पहली शीत्सांग यात्रा में उन्होंने बताया: "यहाँ की वास्तुकला, इतिहास, धर्म और लोगों की जीवनशैली मुझे बहुत ही आकर्षित करती है।"