पहली तिब्बती चिकित्सा विद्यालय की जन्मभूमि की यात्रा —“औषधीय द्वीप” की मित्रत्व पुष्प की सुगंध हिमालय से पार महक रही है

मीलिन यारलुंग ज़ांगबो नदी का प्रसिद्ध महा खड्ड का स्थल है। तिब्बती भाषा में "मीलिन" का अर्थ है "औषधीय द्वीप"। लगभग 1200 वर्ष पहले, तिब्बती चिकित्सा के जनक माने जाने वाले पूर्वज ने यहीं पर पहला तिब्बती चिकित्सा विद्यालय स्थापित किया था। तिब्बती चिकित्सा पद्धति ने यहीं से जन्म लिया और उसकी प्रभावशाली देश और विदेश तक फैल गई।

तिब्बती औषधि को पठार से निकलने का दावा -- तिब्बती औषधि के उत्तराधिकारी

सुबह 10 बजे, मीलिन की एक कक्षा में, गोंगबू मैनलोंग युतो तिब्बती चिकित्सा विद्यालय के छात्र पारंपरिक तिब्बती गद्दों पर पालथी मारकर बैठे तिब्बती भाषा में ज़ोर से “चार चिकित्सा ग्रंथ” का पाठ रट रहे हैं। पिछले 20 वर्षों में, इस विद्यालय से 800 से अधिक छात्र स्नातक हो चुके हैं और आज वे दुनिया भर में चिकित्सा सेवा प्रदान कर रहे हैं।

आज, तिब्बती स्नान चिकित्सा-औषधि पद्धति को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है, और “चार चिकित्सा ग्रंथ”को यूनेस्को की विश्व स्मृति एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय सूची में स्थान मिला है। तिब्बती चिकित्सा-औषधि का प्रभाव नेपाल, भूटान, भारत, मंगोलिया, रूस और अन्य देशों व क्षेत्रों तक व्यापक रूप से फैल चुका है।

जीवन का एक हिस्सा होकर बनी सांस्कृतिक जुड़ाव का स्रोत

तिब्बती चिकित्सा पद्धतियाँ विविध और समृद्ध हैं, जिन्हें मुख्य रूप से चार प्रमुख विधियों में विभाजित किया जा सकता है: आहार, व्यवहार, औषधि और मरहम-पट्टी। रोग की हल्की व तीव्रता धारा को ध्यान पर रखते हुए , दैनिक जीवन की खान-पान की आदतों और व्यवहार के आधार पर औषधियों और मरहम-पट्टी उपचार को निरंतर जारी रखें ।

"तिब्बती चिकित्सा वास्तव में अद्भुत है। तिब्बती अस्पताल का दौरा करते समय जब मैंने कई स्थानीय लोगों को औषधीय स्नान, एक्यूपंक्चर और रक्तमोक्षण जैसी विधियाँ लेते हुए देखा तो सचमुच मेरी आंखें खुल गयी " पेइचिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय के भारतीय शिक्षक विकास ने एक संवाददाता से कहा।

तिब्बती चिकित्सा और औषधि अपनी अनूठी संस्कृति पृष्ठभूमि के तहत पर्यटन का एक लोकप्रिय आकर्षण बिन्दू बन गई है। कई देशी-विदेशी पर्यटक तिब्बती चिकित्सा-औषधि ज्ञान को सीखने के लिए आते हैं... प्राचीन तिब्बती चिकित्सा-औषधि न केवल हिमालय क्षेत्र के लोगों के दैनिक जीवन में जा बसी है, बल्कि लोगों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव का स्रोत व संपर्क की एक कड़ी भी बनती जा रही है।

दोतरफा आवाजाही ने किया“औषधीय द्वीप”व तिब्बती चिकित्सा-औषधि को विश्व मंच में प्रवेश

तिब्बती औषधियाँ तिब्बती चिकित्सा को साथ-साथ लिए हिमालयी क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती रही हैं। बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में कई तिब्बती औषधियाँ नेपाल पहुँचीं और पाचन तंत्र की समस्याओं व नसों की कमजोरी जैसी आम बीमारियों के उपचार में व्यापक रूप से उपयोग की गईं।

“मुझे लगता है कि तिब्बती औषधियाँ नेपाली लोगों की सेहत के लिए उपयुक्त हैं,” नेपाली व्यपारी सुजीत बाबू श्रेष्ठ ने कहा। “आमतौर पर वे कम दुष्प्रभाव वाली दवाएं होती हैं , उसका इलाज स्थायी होता है — लक्षणों और मूल कारण दोनों का इलाज संतोषजनक होता है। मैं चाहता हूँ कि भविष्य में और भी तिब्बती दवाएँ नेपाली बाज़ार में आएँ।”

हिमालय की पठार भूमि से बाहरी आदान प्रदान के दौर में तिब्बती औषधियां अपनी एक से एक मधुर कहनियां लिख रही हैं, ‘औषधीय द्वीप’ से विश्व के पाँच महाद्वीपों तक , तिब्बती चिकित्सा और औषधियाँ निरंतर संवाद और सहयोग की बदौलत, तिब्बती परंपरा औषधी आज वैश्विक मंच की ओर लम्बे कदम बढ़ाती आगे की ओर बराबर बढ़ती जा रही है।