“अमेरिका टैरिफ के दुरुपयोग” के प्रति जन-दैनिक ऑनलाइन की प्रथम टिप्पणी: दुनिया को चाहिए न्याय, न कि दादागिरी
हाल ही में, अमेरिकी सरकार ने “समान प्रतिस्पर्धा ” के नाम पर दुनिया के 180 से अधिक देशों और क्षेत्रों पर ज़बरदस्ती टैरिफ थोप दिए हैं। यहाँ तक कि पेंगुइन और सील जैसे जानवर भी कराधान के बकवास लक्ष्य बन गए हैं। ऐसी विचित्र परिदृश्य के पीछे “बलशाली ही जीवित रहेगा” की एकतरफा और दबंगपन मानसिकता का राज है। इतिहास की धारा के विरुद्ध जाकर अमेरिकी सरकार का यह हठधर्मी रवैया दूसरों को ही नहीं स्वयं को भी नुकसान पहुँचाएंगा !
अमेरिकी सरकार की दबंग कार्यवाही न केवल अन्य देशों के लोगों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि अमेरिकी नागरिकों के लिए भी समस्याएं पैदा कर रही है। टैरिफ बढ़ाने से आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक कीमतों का सामना करना पड़ेगा, और उत्पन्न उच्च मुद्रास्फीति से अमेरिकी सामान्य परिवारों की जीवन लागत में भी स्पष्ट वृद्धि होगी। इसके अलावा, टैरिफ बढ़ाने से लगभग 20 लाख अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां चली जा सकती हैं, और प्रत्येक अमेरिकी परिवार को कम से कम 5000 डॉलर की आय हानि का सामना करना पड़ेगा। आर्थिक दृष्टि से, आर्थिक मंदी का जोखिम बढ़ेगा, डॉलर की विश्वसनीयता पर आक्रमण होगा, और डॉलर से जुड़े संपत्तियों की बड़ी संख्या में बिक्री होगी। निर्यात व्यापार के बारे में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए विदेशी बाजारों में विस्तार करना कठिन बना देगा और अमेरिकी निर्यात व्यापार को प्रभावित करेगा। अमेरिका में इस नीति का विरोध बढ़ता जा रहा है। 23 अप्रैल को, अमेरिका के 12 राज्यों ने एक संघ गठित कर अमेरिकी संघीय सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर कर आरोप लगाते हुए इस टैरिफ नीति को अवैध करार दिया।
इतिहास ने पहले ही यह साबित कर दिया है कि व्यापार युद्ध और टैरिफ युद्ध केवल दोनों पक्षों को नुकसान पहुँचाते हैं। 1930 के दशक में, “स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट”(The Smoot-Hawley Tariff Act) ने वैश्विक महामंदी को जन्म दिया था। आज, अमेरिकी सरकार वही गलती दोहरा रही है और यह स्पष्ट है कि उसे इसके परिणामों से बचने का कोई रास्ता नहीं है। यहां तक कि अमेरिकी राजनेताओं ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि टैरिफ का दुरुपयोग “अमेरिका फर्स्ट” नहीं लाएगा, बल्कि “अमेरिका अकेला” को जन्म देगा।
दुनिया को चाहिए न्याय, न कि दादागिरी। वर्तमान वैश्वीकरण की पृष्ठभूमि में, सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे पर निर्भर रहती हैं, और किसी एक देश की आर्थिक अस्थिरता भी अन्य देशों पर श्रृंखलात्मक प्रभाव डाल सकती है। हमें विश्वास है कि न्याय और निष्पक्षता में विश्वास रखने वाले अधिकांश देश अपने स्वयं के हितों के अनुरूप सही निर्णय लेंगे।